अब कोई अभिमन्यु नहीं होगा कि
माँ अब माँ बन कर भी बाँझ हो गई है
जन्म से पहले जीव का भेद जान
कोख भी लाचार हो गई है
अब कोई घटोत्कच नहीं होगा
पितृ प्रेम से वंचित
माँ से ही पोषित
देकर प्राणों की आहुति
जो हो वंश के लिए समर्पित
अब कोई युयुत्सु भी नहीं होगा
निर्भय निडर सत्य का लेकर पक्ष
भरी सभा में रखे अपना मत
अब तो बस सब होंगें
दुर्योधन और दुश्शासन
कपट कुलषित शासन
चीर हरण देंखें चुपचाप
ऐसा प्रशासन
होंगें आँखों के साथ
धृतराष्ट्र ही पैदा
क्योंकि इतिहास दुहराता है
स्वयं को सदा
इसीलिए अब माँ भी
बाँझ हो गई है
1 comment:
वाकई अब ऐसा ही हो रहा है । यथार्थ की सुंदर अभिव्यक्ति !
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