Tuesday, May 01, 2018

अब कोई अभिमन्यु नहीं होगा कि

माँ अब माँ बन कर भी बाँझ हो गई है

जन्म से पहले जीव का भेद जान

कोख भी लाचार हो गई है


अब कोई घटोत्कच नहीं होगा

पितृ प्रेम से वंचित

माँ से ही पोषित

देकर प्राणों की आहुति

जो हो वंश के लिए समर्पित


अब कोई युयुत्सु भी नहीं होगा

निर्भय निडर सत्य का लेकर पक्ष

भरी सभा में रखे अपना मत


अब तो बस सब होंगें

दुर्योधन और दुश्शासन

कपट कुलषित शासन

चीर हरण देंखें चुपचाप

ऐसा प्रशासन


होंगें आँखों के साथ

धृतराष्ट्र ही पैदा

क्योंकि इतिहास दुहराता है

स्वयं को सदा


इसीलिए अब माँ भी

बाँझ हो गई है

1 comment:

रेखा श्रीवास्तव said...

वाकई अब ऐसा ही हो रहा है । यथार्थ की सुंदर अभिव्यक्ति !