Wednesday, July 17, 2019


यह कहानी नहीं है
                                               
बहुत पुरानी बात है, या एक राजा था एक रानी थी जैसे वाक्यों से कहानी का आरंभ होते तो पढा था पर "यह कहानी नहीं है" ऐसा वाक्य वह भी एक कहानी का शीर्षक बडा अज़ीब सा लगा। परंतु यही सच भी था क्योंकि जब कहानी लिखने बैठी तो सारे वाक्य गडमडा गए । कुछ अतीत की स्मृतियाँ ताजा हो गईं तो कुछ वर्तमान की परिश्तियाँ कहानी के बजाए कविता की पंक्तियाँ लिख बैठी
यादों का पुलिंदा खोल कर बैठा है मन
आज न जाने कहाँ कहाँ उडा जा रहा है मन
यूँही मन उडते-उडते बचपन की देहरी पर जा पहुँचा जहाँ गुडिया की शादी हो रही थी। शादी जैसे सार्थक शब्द का अर्थ तो उस नादान बालिका को नहीं पता था जो गुडिया की शादी रचा रही थी। उसके लिए तो नए कपडे, नए जूते, नए गहने और ढेर सारी मिठाईयाँ ही शादी का अर्थ था। क्या यथार्थ में शादी का यही अर्थ होता है? या सामाजिक और शारीरिक आवश्यकताओं के लिए किया गया एक समझौता या कुछ और भी ....





 " यह कहानियां नहीं है" मेरी ज़िंदगी के हिस्से हैं। जब इन हिस्सों पर  लिखने बैठी तो हठात् लेखनी की गति स्वयं ही अवरूद्ध हो गई। बहुत दिनों से इच्छा थी कि अपने इन हिस्सों को कहानियों  का स्वरूप देकर पुस्तक के रूप में ला सकूँ। ज़िंदगी की कितनी ही घटनाएँ अब तक अवश पडी थीं, कितनी ही स्मृतियाँ उन्मुक्त ठहाके लगा रही थीं, अनेक सिसकियाँ दबी पडी थीं। इन्हें स्मृतियों की टहनी से कुरेदा तो  यादें चटकनें लगी। उन यादों में से कुछ यादों के अंश जुगनुओं की तरह उड़ने और चमकने लगीं।
नारी के लिए लेखन उतना सुगम नहीं है जितना पुरूष के लिए है। नारी के अनुभव का क्षेत्र निश्चित रूप से  पुरूष के अनुभव के क्षेत्र से सीमित और संकुचित होता है। प्रत्येक लेखक का परिवेश और उसके अनुभव का दायरा अवश्य ही उसके लेखन को प्रभावित करता है। पुरूष और नारी के जीवन मूल्यों में निश्चित  ही बहुत बडा अंतर होता है। इसी कारण नारी के द्वारा लिखी गई रचना को पुरूष उस दृष्टि से नहीं देख पाता जिस दृष्टि से उसे लिखा गया है। पुरूष की दृष्टि में जो कोरी भावुकताएँ  होती है वे नारी की दृष्टि में अपने व्यक्तितत्व की अभिन्न अनुभूतियाँ होती हैं। और यदि वे भावुकताएँ हैं भी तो वे प्रामाणिक और सहज भावुकताएँ हैं।  


मेरी आने वाली पुस्तक से कुछ अंश 

·     






































                                        शतरंज की बाज़ी *
  
आसमां और धरती के बीच
शतरंज की बिसात बिछा कर
आ खेले दो –चार बाजी
तेरी शह या मेरी मात
जो भी हो मैं हूँ राज़ी 

सूरज को  ढक कर तूने
मुझको  भरमा दिया 
दीपक की चाल  चल कर
मैंने  खुद को बचा लिया 

समय की चाल चल कर
मुझको तूने बाँध  दिया
समय को लम्हों में बाँट
मैंने जीना सीख लिया

मौत की शह देकर
तूने मुझको घेर लिया
बदन को तेरे हवाले कर
मैंने रूह को बचा लिया

तेरी शह या मेरी मात
रह गई दोनों की बात