Saturday, April 21, 2018

लम्हें

😊
कभी मसाले के डिब्बे में तो कभी दाल के
कभी तकिए के नीचे तो कभी साड़ी के
छोटे-छोटे -से कुछ लम्हें
छिपाकर रखे थे
सिंदूर की डिबिया में तो कभी काजल की
चूड़ियों के बक्से में तो कभी गहनों के
कुछ रंग-बिरंगे सपने जोड़ कर रखे थे
हर दिन की दिनचर्या में उन्हें सहला लेती
एक दिन उन्हें जीने की चाह में बतिया लेती
आज सोचा उनसे खुद को बहलाऊँ
सज धज कर खुद को रिझाऊं
जो अक्स अपना देखा तो पाया
मैं तो कहीं नहीं मेरे जैसी कोई और थी
न जाने कब
हींग की छौंक में दाल के गलने पर
तकिए के बदलने में साड़ी के खुलने पर
सारे लम्हें छीत गए
न जाने कब
सिंदूर के धुलने पर
काजल के फैलने से
चूड़ी के टूटने पर
गहनों के बदलने से
सारे सपने रीत गए
उन्हें सहला कर देखते देखते
उन्हें जीने की चाह में
पल पल एक एक दिन बीत गए
आज अभी जीने की सीख दी गए.😊🌹