काग़ज़ और कलम
एक दिन जब मैंनें
कुछ शब्द लिखें
तत्क्षण काग़ज़ पर
कुछ आँसू देखे
हर्फ़ सब हुए थे तर
रंग हुआ था बदतर
कह रहा था काग़ज़
कलम से अपना नसीब हादसा था अज़ीब
एक दिन जब मैंनें
कुछ शब्द लिखें
तत्क्षण काग़ज़ पर
कुछ आँसू देखे
हर्फ़ सब हुए थे तर
रंग हुआ था बदतर
कलम से अपना नसीब हादसा था अज़ीब
तुम मुझ पर क्यों हो फिरती
रंगरूप मेरा बिगाड हो देती
मुझे काले-नीले रंगों से
क्यिं हो भर दे
रंगरूप मेरा बिगाड हो देती
मुझे काले-नीले रंगों से
क्यिं हो भर दे
किसी के अस्तित्व को निखार
मुझे कलंकित हो कर देती
मुझे कलंकित हो कर देती
मैं नहीं मानती
तुम्हारा तर्क
तुम्हारी क्या कीमत
बिना हर्फ़
रहोगे कोरे तो
पडे रहोगे कोने में
मैंनें ही पहुँचाया है
तुमको कोने-कोने में
छोडो यूँ न करो तकरार
बढाओ न बात को बेकार
एक शाश्वत सत्य यह जान लो
तुम दोनों हो समान मान लो
2 comments:
Khooob
सुंदर भाव
Post a Comment