Thursday, May 03, 2018

काग़ज़ और कलम

एक दिन जब मैंनें 
कुछ शब्द लिखें 
तत्क्षण काग़ज़ पर 
कुछ आँसू देखे

हर्फ़ सब हुए थे तर 
रंग हुआ था बदतर


कह रहा था काग़ज़ 
कलम से अपना नसीब   
हादसा था अज़ीब 
तुम मुझ पर क्यों हो फिरती
रंगरूप मेरा बिगाड हो देती
मुझे काले-नीले रंगों से
क्यिं हो भर दे
किसी के अस्तित्व को निखार
मुझे कलंकित हो कर देती

मैं नहीं मानती
तुम्हारा तर्क
तुम्हारी क्या कीमत 
बिना हर्फ़
रहोगे कोरे तो
पडे रहोगे कोने में 
मैंनें ही पहुँचाया है 
तुमको कोने-कोने में 

छोडो यूँ न करो तकरार
बढाओ न बात को बेकार
एक शाश्वत सत्य यह जान लो
तुम दोनों हो समान मान लो

2 comments:

Unknown said...

Khooob

India said...

सुंदर भाव