विश्व का एकमात्र अंक काव्य
सिरि भूवलय
विचारों के आदान- प्रदान का
सशक्त माध्यम है भाषा। मानव का मानव से
संपर्क माध्यम है भाषा। किंतु भाषा क्या है? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई?
मानव ध्वनि संकेतों के सहारे अपने भावों और
विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए जिस माध्यम को अपनाता है उसे भाषा की संज्ञा दी
जाती है।
भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से निषपन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्त वाणी।
भाषा के उत्पत्ति के संदर्भ में कई सिध्दांत प्रचलित है। भाषा की उत्पत्ति
इतने प्राचीन काल में हुई कि उस पर विचार करने के लिए हमारे पास आज कोई आधार नहीं
है। इस प्रश्न का संतोषजनक और सर्व सामान्य उत्तर ढूंढना कठिन है।
प्राचीन काल में मानव के लिए अंगिकाभिनय ही भावाभिव्यक्ति
का साधन था। इस व्यवस्था ने आगे चलकर चित्राभिव्यक्ति का रूप धारण कर लिया । आदि मानव ने चट्टानों, पत्थरों और दीवारों पर अपने भावों
को चित्रों के रूप में किया, इसे मानव शास्त्र्ज्ञ चित्र
लिपियुग कहते हैं । मानव के द्वारा बोली के अविष्कार करने के कई वर्षों के
पश्चात लिपि का अविष्कार हुआ। लिपि के साथ संख्या भी अवतरित हुई। मानव जब अपने
भावों अनुभावों और अनुभवों को अक्षर रूप में उतारने लगा तब साहित्य का निर्माण
हुआ। इसे अक्षर लिपि काव्य कहा गया । इसी
प्रकार स्पंदित होकर भावों – अनुभावों को
भाषा की तरह ही समर्थ रूप से प्रकट करने के लिए संख्या रूपी संकेतो का जन्म हुआ।
इस प्रकार रचित काव्य को संख्या लिपि काव्य कह सकते हैं। इस रीति से उपलब्ध संख्या
लिपि एकैक आश्चर्य जनक काव्य कुमुदेंदु विरचित सिरिभूवलय अंक काव्य होने पर भी इसमें 718 भाषाएँ समाहित हैं।
ऐसा कवि का कथन है।
आज से अर्ध शताब्दी पूर्व इस अंक काव्य को संग्रहित व संपादन करने के लिए तीन महानुभव
पंडित यलप्पा शास्त्री , कर्ल मंगलं श्री कंठैय्या और के. अनंत सुब्बाराव जी ने अथक प्रयास किया। वर्ष
2003 में यह अंक काव्य ग्रंथ कन्नड अक्षरों के साथ प्रकाशित हुआ। यह इस ग्रंथ का दुर्भाग्य
ही कहा जा सकता है कि यह ग्रंथ लंबे समय तक अपरिचित रहा । वर्ष 2003 में इस ग्रंथ
के प्रकाशन के पश्चात इस महान ग्रंथ का हिंदी में अनुवाद करने का सौभाग्य मुझे
प्राप्त हुआ। अनुवाद करते समय मुझे यह ज्ञात हुआ कि इस अंक ग्रंथ में 64 अंकों को
अक्षरों में परिवर्तित कर ग्रंथ को पढने का प्रयास किया गया है । इस अंक ग्रंथ में
64 वर्णमाला है जो ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत आदि ध्वनियों में विभक्त हुए हैं ।
·
भाषा विज्ञानी भी ध्वनि विज्ञान को अपनी एक शाखा के रूप में स्वीकार करते हैं।
ध्वनियाँ शब्द और अक्षर को खंडित करने से प्राप्त होती है ।
हिन्दी वर्माला में 44 वर्ण
माने गए हैं । परंतु जब हम बात करते हैं तब अनेक उच्चारण ध्वनियाँ होती हैं। उन
ध्वनियों को हम लिख नहीं सकते। इन्हीं उच्चारण ध्वनियों को सिरि भूवलय में स्पष्ट
किया गया है।
सिरि भूवलय के अनुसार 27 स्वर, 33 व्यंजन और 4 आयोगवाह हैं। कुल मिला कर
64 ध्वनियाँ या स्वनिम हैं ।
इस ग्रंथ की रचना सातवीं शताब्दी के लगभग हुई थी और भाषा
विज्ञान का प्रादुर्भाव आधुनिक काल में
हुआ है । वास्तव में देखा जाए तो भाषा
विज्ञान का प्रारंभ भारत में हुआ, ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। किंतु आधुनिक काल में अपने देश में इसके
प्रति रूचि बहुत बाद में जगी और वह भी यूरोपीय व प्रेरणा के फलस्वरूप। लगभग
तीन-चार दशकों से यह विषय काफी लोकप्रिय
हुआ है और होता जा रहा है ।
इस दृष्टि से भाषा विज्ञान और सिरि भूवलय का विश्लेषण एक नई
सोच और दिशा प्रदान करने में सहायक है। यह
संपूर्ण ग्रंथ ध्वनियों पर आधारित अक्षरों पर आधारित है। अंक काव्य होने के बावजूद
अंकों को अक्षरों में परिवर्तित करने के
पश्चात ही ग्रंथ को पढा जा सकता है और
ध्वनियों के आधार पर ही अक्षरों में परिवर्तित किया गया है।
इस विलक्षण ग्रंथ में मूल विज्ञान विषय, दर्शन का तात्विक विचार, वैद्य अणु विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित शास्त्र,
इतिहास और संस्कृति विवरण, वेद, भगवद
गीता के अवतरण सभी समाहित हैं ।
सिरि भूवलय – एक
संक्षिप्त परिचय- श्री कुमुदेंदु विरचित सिरि
भूवलय 56 अध्यायों का एक जैन ग्रंथ है। परंतु यह परिचित रीति ग्रंथ नहीं है।
अर्थात किसी एक भाषा के वर्णमाला के वर्णों का प्रयोग कर तैयार किए गए शब्दों में
लिपि बध्द रूप का गद्य-पद्य- निबंध ग्रंथ नहीं है। गणित में प्रयोग किए जाने वाले
संख्याओं का प्रयोग कर तैयार किया गया ग्रंथ है । अंकों को अक्षरों के स्थान पर
उनके प्रतिनिधि तथा प्रतिरूप के रूप में उपयोग करना ही इसका वैशिष्टय और वैलक्षण
है। संस्कृत-प्राकृत और कन्नड भाषा के लिए समान रूप से संबंधित संप्रदाय रूप
प्राप्त 64 मूल वर्णों को 1 से लेकर 64 तक के अंक प्रतिनिधित्व करते हैं ।
प्रत्येक अक्षरों के लिए उपयुक्त अंकों को चौकोर खानों में (27 * 27 = 729) भरे गए
अंक राशी चक्र ही इस ग्रंथ के पृष्ठ हैं । कवि इसे अंक काव्य कहकर संबोधित करते
हैं। अंक काव्य होने पर भी इसमें 718 भाषाएं निहित हैं। ऐसा कवि का कहना है । कुमुदेंदु
की स्व हस्ताक्षर प्रति उपलब्ध नहीं है।
ध्वनि विज्ञान और सिरि भूवलय की ध्वनियाँ- भाषा विज्ञान की
एक शाखा ध्वनि विज्ञान है। जिसमें ध्वनि
का अध्ययन किया जाता है। वाक्य को खंडित करने पद मिलते हैं तथा पद को खंडित करने
पर शब्द और संबंध तत्व मिलते हैं। संबंध तत्व और शब्द को खंडित करने पर ध्वनियाँ
मिलती हैं । इन्हीं ध्वनियों का अध्ययन ध्वनि विज्ञान में किया जाता है। वक्ता
ध्वनियाँ उच्चारित करता है फिर वे वायु
के द्वारा लाईं जाती हैं और फिर श्रोता उन्हें सुनता है । इन्हीं तीन
आधारों पर ध्वनि विज्ञान का वर्गीकरण किया जाता है
सिरि भूवलय में भी अंकों को ध्वनियों के आधार पर अक्षरों का
रूप दिया गया है । भाषा विज्ञान के साथ सिरि भूवलय का यही गूढ संबंध है ।
·
सिरि
भूवलय में भाषा में ध्वनि का स्थान स्पष्ट होता है।
आज वर्णमाला में 44 वर्णों का प्रयोग होता है । परंतु इस
निर्धारण के पूर्व इस विषय पर मतभेद था । हम केवल ह्रस्व एवं दीर्घ स्वरों का
प्रयोग करते हैं और उन्हीं को लिखते हैं परंतु सिरि भूवलय यह स्पष्ट रूप से कहता
है कि उच्चारण के समय हम केवल ह्रस्व या दीर्घ स्वरों का नहीं वरन प्लुत ( दीर्घ
से भी बडा) स्वरों का भी प्रयोग करते हैं । इन ध्वनियों के आधार पर यदि वर्णमाला
तैयार की जाए तो 64 अक्षर बन सकते हैं
आदि तीर्थंकर होने वाले पुरदेव तीसरे परिनिष्क्रमण कल्याण
के बाद वैराग्य परावश होकर समस्त साम्राज्य को अपने पुत्रों में बाँट देते हैं ।
उस समय आदि देव की दो पुत्रियाँ कुछ शाश्वत संपत्ति देने का आग्रह पिता से करती
हैं । तब आदि नाथ वॄषभ स्वामी ज्येषठ पुत्री ब्राह्मी को अपने बाँयी तथा छोटी पुत्री सौन्दरी को अपने दाँयीं
गोदी में बिठा कर ब्राह्मी के बाँयें हाथ पर अपने दाँएँ हाथ के अँगूठे से ॐ लिखते
हैं । उसमें ६४ अक्षरों के वर्णमाला का सृजन कर " यह तुम्हारे नाम में अक्षर
हो" और "समस्त भाषाओं के लिए इतने ही अक्षर पर्याप्त हो" कह कर
आशीर्वाद देते हैं । ब्राह्मी से अक्षर लिपि को ब्राह्मी लिपि का नाम पडा । उनके
द्वारा ब्राह्मी को " साहित्य शारदे" नाम की शाश्वत संपत्ति प्राप्त हुई
।
वृषभस्वामी अपनी दाँयी गोदी पर बैठी सौन्दरी के दाहिने हथेली पर अपने
बाँएँ हाथ के अँगूठे से उसकी हथेली के मध्य भाग पर शून्य लिख कर इस शून्य को मध्य
भाग में काटे तो ऊपर का भाग (टोपी के आकार का) और नीचे के भाग को अर्थ पूर्ण ढंग
से मिलाते जाए तो ९ अंकों की सृष्टि होगी । इस तरह शून्य से ही विश्व की और गणित
में अंकों की सृष्टि को दिखा कर सौन्दरी को गणित अथवा संख्या शास्त्र विशारदे नाम
की शाश्वत संपत्ती प्रदान करते हैं ।

ह्रस्व, दीर्घ और प्लुतों से मिलकर २७ स्वर,
क,च,त,प, जैसे २५
वर्गीय वर्ण
य,र,ल,व, अवर्गीय
व्यंजन
बिन्दु
अथवा अनुस्वार (०)
विसर्ग
अथवा विसर्जनीय (:)
जिह्वा
मूलीय (ஃ) (यह तमिल
में प्रयोग
होता है जो हिन्दी के बिन्दु का प्रतीक है)
उपध्मानीय
(::) नाम के चार योगवाह
सभी मिलाकर ६४ मूलाक्षरों को १ से लेकर ६४
संख्याओं का संकेत देते हैं । यह क्रम रूप से २७ गुणा २७ = ७२९ बनते हैं । कवि के
निर्देशानुसार ऊपर से नीचे , नीचे से ऊपर अंकों की राह पकड कर चले तो भाषा की
छंदोबध्द काव्य अथवा एक धर्म, दर्शन, कला, विज्ञान बोधक शास्त्र कृति लगती है । यह संपूर्ण
ग्रंथ ध्वनियों पर आधारित अक्षरों पर आधारित है । अंकों को अक्षरों में परिवर्तित
करने के पश्चात ही पढा जा सकता है।
718 भाषाओं को कन्न्ड काव्य में संयोजित
करने के लिए कुछ बंधों का प्रयोग किया
गया है। श्रेणी बंध में आए हुए कन्नड काव्य के पहले अक्षरों को ऊपर से नीचे पढते
जाए तो वह प्रकृत काव्य होगा । बीच के 27वें अक्षर से नीचे पढें तो वह संस्कृत
काव्य बनेगा । इस रीति से बंधों को अलग-अलग रीतियों से देखा जाए तो विविध बंधों
में बहु विधि की भाषाएँ आएँगी ऐसा कवि कहते हैं ।
कवि बंधों के नाम इस प्रकार कहते हैं – चक्र बंध, हँस बंध, पद्म बंध, शद्ध बंध , नवमांक बंध,
वरपद्म बंध, महापद्म, द्वीप,सागर, पल्या, अनुबंध, सरस, शलाका, श्रेणी, अंक, लोक, रोम, कूप, क्रौंच, मयूर, सीमातीत, कामन, पदपद्म, नख, सीमातीत लेख्य
बंध, इत्यादि बंधों में काव्यों की रचना की है।
विशेष- * 718 भाषाओं और 363 मतों के अंवय और विचार सिरि भूवलय में
दिखाई पडते हैं , कहना ही ग्रंथ की आधुनिकता को दर्शाती है।
·
संस्कृत,
प्राकृत और द्रविड भाषा लिपि के साथ आधुनिक आर्य भाषा जैसे मराठी, गुजराती, बंगाली, उडिया, बिहारी भाषाओं के साथ साहित्य संवर्धनों में तमिल,
तेलगु, मलायालम भाषाओं को और यवन,
फारसी, खरोष्ठि, तुर्की देशों की
भाषाओं का भी यहाँ उल्लेख मिलता है।
·
वीरशैव के उत्त्कर्ष काल तथा
मधवाचार्य के काल (1238-1317) अनंतर
प्रवर्तित अद्वैत- द्वैत सिध्दांत भेद भी यहाँ प्रस्तावित
·
कुमुदेंदु अपने कृति में अनेक जैन क्षेत्रों
का उल्लेख करते हैं ।
कुमुदेंदु द्वारा रचित सिरि भूवलय एक मध्य कन्नड
भाषा की रचना है । सांगत्य , अनिर्दिष्ट छंद बंध पद्म पंक्तियाँ उस भाषा के वैलक्षणों को लेकर ही रचित
है । हाडलु सुलभवादंग नोडलु मेच्चुव गणित (गीत की भाँति सरल और दृष्टि भावन गणित)
कहना ही ग्रंथ स्वरूप है।
इस ग्रंथ के सामन्य भाषिक लक्षणों को संग्रहित कर
सकते हैं –
·
व्यंजनांत शब्द स्वरांत बने हैं
·
छ- ळ –र ध्वनियों के बीच अंतर न करते हुए उन्हें प्रास
स्थान में और अन्यत्र भी प्रयोग किया गया है ।
·
"प" कार घटित शब्द "ह" कार रूप में है।
·
अपूर्व प्राचीन कन्नड समय के शब्द प्रौढ संस्कृत शब्द और
उनके समासों का प्रयोग नहीं हुआ है ।
·
अन्य देश, नवीन कन्नड काल के शब्द आज के व्यव्हार भाषा के चलन में
रहने वाले शब्द रूप भी यहाँ-वहाँ दिखई पडते हैं ।
·
प्रासाक्षरों के प्रयोग में शिथिलता है ।
·
वाक्य रचना में सरलता और सौलभ्यता से दिखाई पडते हैं । रचना
की अडचन और प्रौढता उतनी दिखाई नहीं पडती है ।
·
छ कार और ळ कार के लिए क्रम से "रळ" "कुळ" जैसे 13 वीं सदी के बाद के संकेत नामों का
प्रयोगा किया गया है ।
भाषाओं
के लिए कुमुदेंदु ने भाषा और लिपि दोनों बनी हुई स्व भाषा कन्नड को आधार भाषा के
रूप में चुना है । यहाँ धवल टीकाओं के सिद्धांत शास्त्र, सार वस्तु विवरण के लिए लेकर,
नवमांक पद्धति/
श्रेणीगति/ चक्र बंध विधान में चमत्कारिक
रूप से ग्रंथ रचना की गई है। यही भूवलय सिरि भूवलय नाम का 56 अध्यायों का सिद्धांत
ग्रंथ है । इस ग्रंथ की भाषाओं को वस्तु विस्तार को निरूपित करने का आज तक जो भी
प्रयत्न हुए हैं , इन्हें आगे बढाना अद्ययन
कर्त्ताओं के सामर्थ्य पर आधारित है ।
संस्कृत –प्राकृत
और कन्नड भाषा के लिए समान रूप से संबंधित संप्रदाय रूप प्राप्त 64 मूल वर्णों को 1 से लेकर 64 तक के अंक
प्रतिनिधित्व करते हैं। यह केवल एक ही कन्नड भाषा प्रतिनिधित्व अंकों में ही होने
पर भी विश्व की अनेक भाषाओं, अनेक काव्य शास्त्रों , धर्म, राजनीति, मनोविज्ञान, ज्योतिष्य
आदि को समाहित किए हुए है।
कुमुदेंदु की स्व हस्ताक्षर प्रति उपलब्ध
नहीं है। सभी विषयों की जानकारी ग्रंथ में से निकालने के लिए आधुनिक शोध से तुलना
करने के लिए सतत प्रयत्न करना अभी शेष है। विविध क्षेत्रों से गणितज्ञ और भाषा
विद् हाथ मिलाएँ तो अनेक लुप्त होते जा रहे ग्रंथ और भाषाओं को पुनः पहचाना जा
सकता है प्रकाश में लाया जा सकता है। साथ
ही उच्चारण ध्वनियों की सहायता से लिपि लिखने की रीति में परिवर्तन हो सकता है।
जिससे अनुवाद की समस्या भी कुछ सीमा तक सुलझ सकती है।
शुभम्
स्वर्ण
ज्योति
नं 30, 1 ला माला, 1ला क्रास,
बृंदावन, सारम पोस्ट
पॉण्डिचेरी
605013
फोन-
9443459660
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