Friday, March 09, 2007

पानी

पानी रे पानी
तेरा नहीं कोई सानी

तेरा नहीं कोई रंग
पर निराले तेरे ढंग

तू जीवन की रस धार
तुझमें बसे सारा संसार

कभी बूँदें तो कभी बौछारें
कभी बरखा तो कभी बाढें

तेरे कितने ही नाम
पूजे हम तेरे धाम

कहीं तू माता तो कहीं सुता
कहीं तू पुत्र तो कहीं मित्र

तेरा विचित्र रूप सुनामी
बना गया जीवन को बेमानी

तेरी लीला अपरम्पार
तू लगाए भव सागर पार

पानी रे पानी
तेरा नहीं कोई सानी

यह कविता पाँडीचेरी में सुनामी से हुई
तबाही पर लिखी गई थी।

7 comments:

ghughutibasuti said...

अच्छा लिखा है ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

सुनामी की विभीषिका--कैसे कोई भूल सकता है!!

उसी त्रासदी पर हमने भी उस वक्त लिखा था अपना मनोभाव, देखें हिन्दी नेस्ट पर:

http://www.hindinest.com/kavita/2003/082.htm

Anonymous said...

सच्मुच पानी के कई रूप हैं.. इसका कोई सानी नही.. अच्छी कविता..

Mohinder56 said...

आप ने बहुत सुन्दर भाव की कविता रची है, सत्य है कि

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिस में मिला दो लगे उस जैसा

Sagar Chand Nahar said...

कम शब्दों में सुना्मी के दर्द को अच्छा बयां किया आपने।

Pradeep ۩۞۩ with Little Kingdom ۩۞۩ said...

दो बूँद कभी वो आसूं हैं....
दो बूँद कभी वो समंदर के ....
दो बूँद से डोले जग सारा...
दो बूँद नए कई मंज़र के ....

बहूत खूब लिखा आपने....मेरी कलम भी नही रुक पाई.....इसे ही लिखती रहिये....मेरी शुभ कामनाये आपके साथ हैं....ऑरकुट पर एक कम्युनिटी बनाई है मैंने.....उन सभी के लिए जिनके विचार अलग हैं....जो अलग तरह से अपनी बात दुनिया के सामने रखते हैं....जो अपने विचारों से लोगों को आगे बढ़ाना चाहते हैं....उनकी प्रेरणा बनना चाहते हैं.....मैं चाहता हूँ आप भी वहां कुछ लिखें उसको ज्वाइन करें.....उसका नाम है "पाठशला" और उसका लिंक है ---- http://www.orkut.co.in/Main#Community.aspx?cmm=50135104

Swarna Jyothi said...

सभी मित्रों को नमस्कार🙏 बहुत दिनों यूँ कहिए बहुत सालो बाद आप सब से पुनः मुखातिब हो रही हूं। एक बार फिर से आप सब का सहयोग चाहती हूं। मुझे पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए । आप सभक धन्यवाद ।🌹😊🙏