माटी का दिया
सांध्य रवि ने कहा
मेरे बाद होगा कौन?
रह गया सारा जग
सुनकर निरूत्तर मौन
एक नन्हें दिए ने
तब कहा कि " नाथ
जितना मुझसे हो सकेगा
मैं दूँगा साथ"
कि छोटा-सा हूँ मैं
माटी का एक दिया
खुद जलता हर पल
जग रोशन करता पल-पल
माना मुझमें है नहीं
सूरज की-सी रोशनी
मुझमें है नहीं
चँदा की-सी चाँदनी
पर मुझमें कोई दाग नहीं
और न लगे मुझें ग्रहण कभी
हो चाहे मेरे तले अँधेरा
पर रोशन हो हर बसेरा
कि मैं एक छोटा-सा
माटी का दिया
सांध्य रवि ने कहा
मेरे बाद होगा कौन?
रह गया सारा जग
सुनकर निरूत्तर मौन
एक नन्हें दिए ने
तब कहा कि " नाथ
जितना मुझसे हो सकेगा
मैं दूँगा साथ"
कि छोटा-सा हूँ मैं
माटी का एक दिया
खुद जलता हर पल
जग रोशन करता पल-पल
माना मुझमें है नहीं
सूरज की-सी रोशनी
मुझमें है नहीं
चँदा की-सी चाँदनी
पर मुझमें कोई दाग नहीं
और न लगे मुझें ग्रहण कभी
हो चाहे मेरे तले अँधेरा
पर रोशन हो हर बसेरा
कि मैं एक छोटा-सा
माटी का दिया
7 comments:
पर रौशन हो हर बसेरा ...
खूबसूरत रचना और मानवीय भाव ... ����
धन्यवाद राजेश जी और भी रचनाएँ हैं गौर फरमाइएगा।,😊🌹
बहुत सुन्दर कविता
सुंदर कविता और अभिव्यक्ति !
अतिसुंदर।
Bahut bahut dhnywaad Viji ji rekha ji Anur monalisa ji
Lovely poem...aisehi roshni filate rahiye
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