" यह कहानियां
नहीं है" मेरी ज़िंदगी
के हिस्से हैं। जब इन हिस्सों पर लिखने
बैठी तो हठात् लेखनी की गति स्वयं ही अवरूद्ध हो गई। बहुत दिनों से इच्छा थी कि
अपने इन हिस्सों को कहानियों का स्वरूप देकर पुस्तक के रूप में ला
सकूँ। ज़िंदगी की कितनी ही घटनाएँ अब तक अवश पडी थीं, कितनी ही स्मृतियाँ उन्मुक्त ठहाके लगा रही थीं, अनेक सिसकियाँ दबी पडी थीं। इन्हें
स्मृतियों की टहनी से कुरेदा तो यादें चटकनें
लगी। उन यादों में से कुछ यादों के अंश जुगनुओं की तरह उड़ने और चमकने लगीं।
नारी के लिए लेखन उतना सुगम नहीं है जितना पुरूष के लिए है। नारी के अनुभव का
क्षेत्र निश्चित रूप से पुरूष के अनुभव के
क्षेत्र से सीमित और संकुचित होता है। प्रत्येक लेखक का परिवेश और उसके अनुभव का दायरा अवश्य ही उसके लेखन को प्रभावित करता है। पुरूष और नारी
के जीवन मूल्यों में निश्चित ही बहुत बडा
अंतर होता है। इसी कारण नारी के द्वारा लिखी गई रचना को पुरूष उस दृष्टि से नहीं
देख पाता जिस दृष्टि से उसे लिखा गया है। पुरूष की दृष्टि में जो कोरी भावुकताएँ होती है वे नारी की दृष्टि में अपने व्यक्तितत्व की अभिन्न अनुभूतियाँ होती हैं। और
यदि वे भावुकताएँ
हैं भी तो वे प्रामाणिक और सहज भावुकताएँ हैं।
मेरी आने वाली पुस्तक से कुछ अंश
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