
पानी रे पानी
तेरा नहीं कोई सानी
तेरा नहीं कोई रंग
पर निराले तेरे ढंग
तू जीवन की रस धार
तुझमें बसे सारा संसार
कभी बूँदें तो कभी बौछारें
कभी बरखा तो कभी बाढें
तेरे कितने ही नाम
पूजे हम तेरे धाम
कहीं तू माता तो कहीं सुता
कहीं तू पुत्र तो कहीं मित्र
तेरा विचित्र रूप सुनामी
बना गया जीवन को बेमानी
तेरी लीला अपरम्पार
तू लगाए भव सागर पार
पानी रे पानी
तेरा नहीं कोई सानी
यह कविता पाँडीचेरी में सुनामी से हुई
तबाही पर लिखी गई थी।