कविताएँ लिखना मुझे नहीं आता है क्योंकि मैंने कभी भी लिखने के लिए नहीं लिखा बस कभी कोई ख्याल मन में आया, कभी कोई दर्द दिल को तडपा गया, कभी कोई खुशी तन को महका गई तो कभी कोई सपना देख लिया, सारे ख्याल, सारे दर्द , सारी खुशियाँ और सारे सपनों को कलम के जरिए कागज़ को कह दिया अब कहने से ही तो दिल ्हल्का होता है न ।
हम सभी बहुत सारे सपने देखते हैं कभी -कभी दिन में जागती आँखों से भी सपने देखते हैंं
मैंने भी कुछ सपने देखे हैंं आप को मेरे सपनों के विषय में बताती हूँ देखिए हँसिएगा नहीं
कैसा होगा
कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
तरन्नुमों* से खामोशी* तक,
इस राह से उस मँजिल तक,
बस फ़ूल ही फ़ूल हो तो कैसा होगा....?
कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
सूरज की रोशनी से चँदा की चाँदनी तक ,
एक ऊषा से एक निशा तक ,
इतना फ़ासला ही न हो तो कैसा होगा...?
कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
आसमां और धरती का मिलन ,
क्षितिज की इस कल्पना का,
सत्य में साकार हो तो कैसा होगा....?
कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
सपने तो सपने हैं सपनों की हक़ीक़त क्या?
पर सपने भी सच्चे हो ं तो कैसा होगा......?
*जन्म
*मृत्यु
Tuesday, November 07, 2006
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4 comments:
स्वर्ण ज्याति जी, हिन्दी ब्लॉग जगत् में आपका हार्दिक स्वागत् है। उम्मीद है कि आप निरन्तर हिन्दी में लेखन करती रहेंगी। आपसे एक निवेदन है, कृपया फ़ॉण्ट का रंग सफ़ेद रखें ताकि पढ़ने में आसानी हो। लाल और नीले रंग की लिखाई गहरे रंग के बैक-ग्राउण्ड पर पढ़ना काफ़ी असुविधाजनक है।
HindiBlogs.com
ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है!
तरन्नुम और खामोशी का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है आपने। काश! जैसी आपनी कामना की है हो जाये।
सुझाव- जब भी यूनिकोड में टंकण करें, पोस्ट (प्रकाशित) करने से पहले यह जाँच लें कि कहीं कोई मात्रात्मक त्रुटि तो नहीं है।
शेष धीरे-धीरे आप स्वयम् समझ जायेंगी।
स्वर्ण ज्योति जी, हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है!
उम्मीद करता हूँ कि आपकी सुन्दर कविताएँ अब लगातार पढ़ने को मिलेगी।
मैं आपके इस ब्लॉग के बारे में नारदजी को हिन्दीब्लॉगस डोट कॉम को सूचित कर दूँगा ताकि ज्यादा से ज्यादा काव्यप्रेमी आपकी कविताओं का आनन्द प्राप्त कर सकें। तब तक आप कृपया अपनी नई पोस्ट की सूचना हमें ई-मेल के जरिये देती रहें।
शुभकामनाएँ!!!
स्वर्ण ज्योति जी
नमस्कार, गिरिराज जोशी जी के orkut के प्रोफाईल से आपके ब्लोग का पता चला।
आपका हिन्दी चिठ्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है। आपका कन्नड़ भाषी होते हुए हिन्दी के प्रति इतना प्रेम निश्चय ही सराहने लायक है।
आप अपने कविता संग्रह " अच्छा लगता है" की कवितायें भी यहाँ हम सबके लिये लिखें तो अच्छा होगा। आपकी नयी पुरानी सारी रचनाओं को जल्द से जल्द हम सबके बीच बाँटे।
आपने लिखा कि आप जैन ग्रंथ का अनुवाद कर रही हैं क्या आप जैन है?
सागर चन्द नाहर" जैन"
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