Saturday, February 17, 2007

माँडू
मेरे सामने एक तस्वीर है
माँडू का जहाज महल
पुण्य-पवित्र नर्मदा के तट पर
माँग रहा न्याय समय के दर पर

बाज़ बहादुर के दीवानगी का
रूपमती के रूप लावण्य का
सबूत
आज बन गया
ताबूत
माँडू का जहाज महल

इतिहास के पन्नों पर शाश्वत
हमारी संस्कृति का विरासत
गुमनामी के अँधेरों से होकर आहत
गूँजें आवाज़, करे खँडहरों से सवालात

नर्मदा के कलकल में वह स्वर नहीं
रानी का मन मोह लेती थी जो कभी
सिसक रही थी उसकी कलकल
अपनी ज़र्ज़र अवस्था के देख पल

पाकर रूखा-सूखा स्पर्श
आज वह भी हो गए हैं चुप
बन गए होकर विवश
कैलेंडर की एक तस्वीर
देख इसे ही शायद कोई
समझे उनकी पीर

6 comments:

ePandit said...

अच्छी कविता स्वर्णा जी, इस महल का नाम जहाज महल कैसे पड़ा कुछ बता सकती हैं ?

"but im first love is HINDI.working in hindi is my passion."

आपके हिन्दी प्रेम के बारे में जानकर अच्छा लगता है

क्या आपने मेरी ये पोस्ट पढ़ी:
अपने चिट्ठे का नाम हिन्दी में क्यों नहीं रखते

Anonymous said...

इतिहास की खंडहर होती धरोहर के मौजूदा हालतों क मार्मिक चित्रण आपकी कविता में.. साथ ही इस महल के बारे में बताने क शुक्रिया..

Swarna Jyothi said...

शिरीष जी आप का धन्यवाद आप को कविता अच्छी लगी और आप मेरे हिन्दी प्रेम से वाकिफ़ हुए जान कर मुझे अच्छा लगता है । आप का पोस्ट अभी नहीं पढा है जल्द पढूँगीं वैसे मेरे चिट्ठे का नाम तो हिन्दी में ही है न ।

मन्या जी आपका भी शुक्रिया यह महल बहुत प्रसिद्ध है पर उपेक्षित होती जा रही है सरकार को चाहिए कि ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों कों सुरक्षा प्रदान करें मेरी यह कविता उनका ध्यान खींचने के लिए किया गया छोटा सा प्रयत्न है

शैलेश भारतवासी said...

इतिहास-सम्बन्धी ज्ञान को बढ़ाने और उनकी धरोहरों की उपेक्षा पर चिंता व्यक्त करने का शुक्रिया।

Divine India said...

हमारी सांस्कृतिक धरोहर पर ऐसी बहुत सारी जागृत कर देने बाली और कविताएँ लिखी जानी चाहिए…यह शुरुआत दिशा है…हम जैसे लेखकों के लिए कि वो और किस ओर अपनी लेखनी को उन्मुख कर सकें…।
चेतना में ज्योत जला के सिखलाया है
कुछ करें भला हम राष्ट्र की…!!!

javed shah said...

mera man mandav ke khandaron me bhatkata fir raha hai?aisi poem padkar laga jaise rupmati ne apni surili taan aur jadui lekhni chhed di ho.......thanks(javed shah....mandav)