खूनी सागरआज दिन भर रहा
उसका साया
मेरे साथ फिरता रहा
बनकर छाया
ज्यों ही पल-पल
दिन गहराया
त्यों-त्यों मेरा मन
घबराया कि
वक्त ने वही क्षण
है दुहराया
आज फिर खून हो गया
गगन पुनः लाल हो गया
मैं दौडा, भागा भी
चीख कर था उसे
रोका भी पर
अफ़सोस सारे प्रयत्न
हुए विफल
आज सागर ने फिर
सूरज को था निगल
मैं स्तब्ध सा था खडा
आँखें हुई थी सजल
आँखें हुई थी सजल




