विश्व का एकमात्र काव्य
इस दुनिया मे अनगिनत भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती है, समझी जाती है, लिखी और पढी जाती हैं। इतिहास साक्षी है कि कई मतभेदों का कारण भाषावाद रहा है। जिस समाज में जातिवाद का प्रचलन हो उस समाज में भाषावाद स्वयंमेव ही जन्म ले लेता है।
आदि मानव के लिए अंगीकाभिनय ही भावाभिव्यक्ति का साधन था । इस व्यवस्था ने आगे चलकर चित्राभिव्यक्ति का रूप धारण कर लिया यह चित्राभिव्यक्ति कोई श्रेष्ठ चित्रकला का प्र्तीक नहीं थी । मानव के द्वारा बोली का अविष्कार करने के कई वर्षों के बाद लिपि का अविष्कार हुआ । लिपि के साथ संख्या भी अवतरित हुई । मानव जब अपने भावों, अनुभावों और अनुभवों को अक्षरों मे उतारने लगा तब साहित्य कानिर्माण हुआ इसे अक्षर लिपि काव्य कहा जाता है । इसी प्रकार स्पंदित होकर भावों -अनुभावों को भाषा की तरह ही समर्थ रूप से प्रकट करने के लिए संख्या रूपी संकेतों का जन्म हुआ इनके द्वारा रचित रचना को संख्या लिपि काव्य कह सकते हैं ।
इस रीति से उपलब्ध संख्या लिपि एकैक आश्चर्य जनक काव्य श्री कुमदेन्दु विरचित सिरि भूवलय है ।
सिरि भूवलय विश्व के आश्चर्यों में से एक है ऐसी घोषणा करने में आगे-पीछे सोचने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक अपूर्व, अन्यादृश, विशिष्ट , संख्या धारित, सांकेतिक धार्मिक काव्य, जैन धार्मिक काव्य, कन्नड अंक लिपि में लिपि बध्द लेकिन विश्व के ७१८ भाषाओं को अपने गर्भ में रख अपने महोन्नति से विश्व के भाषा साहित्य के लिए एक प्रश्न बन कर खडा, विचित्र और विशिष्ट कला कॄति है । इसी कारण श्री कुमदेन्दु इसे सर्व भाषा मयी कर्नाटक काव्य और विश्व काव्य कहकर संबोधित करते हैं ।
आदि तीर्थंकर होने वाले पुरदेव तीसरे परिनिष्क्रमण कल्याण के बाद वैराग्य परावश होकर समस्त साम्राज्य को अपने पुत्रों में बाँट देते हैं । मुख्य रूप से भरत को "षट्टखंड मंडल" और बाहुबली स्वामी को "पौदनपुरादि महाभाग " प्राप्त होता है । शेष पुत्रों को शेष भूभाग में बँटवारा होता है। उस समय आदि देव की दो पुत्रियाँ कुछ शाश्वत संपत्ति देने का आग्र्ह पिता से करती हैं । तब आदि नाथ वॄषभ स्वामी ज्येषठ पुत्री ब्राह्मी को अप्ने बाँयी तथा छॊटी पुत्री सौन्दरी को अपने दाँयीं गोदी में बिठा कर ब्राह्मी के बाँयें हाथ पर अपने दाँएँ हाथ के अँगूठे से ॐ लिखते हैं । उसमें ६४ अक्षरों के वर्णमाला का सृजन कर " यह तुम्हारे नाम में अक्षर हो" और "समस्त भाषाओं के लिए इतने ही अक्शर पर्याप्त हो" कह कर आशीर्वाद देते हैं । ब्राह्मी से अक्षर लिपि को ब्राह्मी लिपि का नाम पडा । उनके द्वारा ब्राह्मी को " साहित्य शारदे" नाम की शाश्वत संपत्ति प्राप्त हुई ।
वृषभस्वामी अपनी दाँयी गोदी पर बैठी सौन्दरी के दाहिने हथेली पर अपने बाँएँ हाथ के अँगूठे से उसकी हथेली के मध्य भाग पर शून्य लिख कर इस शून्य को मध्य भाग में काटे तो ऊपर का भाग (टोपी के आकार का) और नीचे के भाग को अर्थ पूर्ण ढंग से मिलाते जाए तो ९ अंकों की सृष्टि होगी । इस तरह शून्य से ही विश्व की और गणित में अंकों की सृष्टि को दिखा कर सौन्दरी को गणित अथवा संख्या शास्त्र विशारदे नाम की शाश्वत संपत्ती देते हैं ।
इस प्रकार सौन्दरी के अंक ही अक्शरों के और ब्राह्मी के अक्षर ही अंकों के बराबर होंगें ऐसा स्पष्ट कर दोनों पुत्रियों को दी गई शाश्वत संपत्तो एक ही वज़न की है , कह अंकाक्षर लिपि में भी काव्य रचना की साध्यता का विवरण करते हैं ।
इसी को आधार बना कर मुनि कुमदेन्दु ने अपने सिरि भूवलय काव्य की रचना की जिसमें वे ६४ ध्वनियों का संकेत देते हैं जिसमें हर्स्व, दीर्घ और प्लुतों से मिलकर २७ स्वर, क,च,त,प, जैसे २५ वर्गीय वर्ण य,र,ल,व, अवर्गीय व्यंजन बिन्दु अथवा अनुस्वार (०) विसर्ग अथवा विसर्जनीय (ः) जिह्वा मूलीय (ஃ) (यह तमिल में प्रयोग होता है जो हिन्दी के बिन्दु का प्रतीक है ) उपध्मानीय (ःः) नाम के चार योगवाह सभी मिलाकर ६४ मूलाक्शरों को १ से लेकर ६४ संख्याओं का संकेत देते हैं । यह क्रम रूप से २७गुणा २७ =७२९ बनते हैं । कवि के निर्देशानुसार ऊपर से नीचे , नीचे से ऊपर अंकों की राह पकड कर चले तो भाषा की छंदोबध्द काव्य अथवा एक धर्म, दर्शन, कला, विञान बोधक शास्त्र कृति लगती है ।
यह केवल एक ही कन्नड भाषां प्रतिनिधित्व अंकों में ही होने पर भी विश्व की अनेक भाषाओं, अनेक काव्य शास्त्रों , धर्म, राजनीति, मनोविञान, ज्योतिष्य आदि को समाहित किए हुए है सभी को एक अर्थपूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने वाली विश्व विनूतन आश्चर्यकर रचना होने के कारण इसे अंकाक्षर विञान रूपी विश्व कोष भी कह सकते हैं।
Wednesday, January 10, 2007
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