खूनी सागर
आज दिन भर रहा
उसका साया
मेरे साथ फिरता रहा
बनकर छाया
ज्यों ही पल-पल
दिन गहराया
त्यों-त्यों मेरा मन
घबराया कि
वक्त ने वही क्षण
है दुहराया
आज फिर खून हो गया
गगन पुनः लाल हो गया
मैं दौडा, भागा भी
चीख कर था उसे
रोका भी पर
अफ़सोस सारे प्रयत्न
हुए विफल
आज सागर ने फिर
सूरज को था निगल
आज दिन भर रहा
उसका साया
मेरे साथ फिरता रहा
बनकर छाया
ज्यों ही पल-पल
दिन गहराया
त्यों-त्यों मेरा मन
घबराया कि
वक्त ने वही क्षण
है दुहराया
आज फिर खून हो गया
गगन पुनः लाल हो गया
मैं दौडा, भागा भी
चीख कर था उसे
रोका भी पर
अफ़सोस सारे प्रयत्न
हुए विफल
आज सागर ने फिर
सूरज को था निगल
मैं स्तब्ध सा था खडा
आँखें हुई थी सजल
आँखें हुई थी सजल
9 comments:
सोंच ही तो सबकुछ है…बहुत सरलता से जोड़ा है…भावनाओं को सोंच से…तस्वीर भी बिल्कुल मेल खा रही है…कविता से!!
बहुत अच्छा लिखा है ज्योति जी ।
आप के बारे मे जानकर और भी अच्छा लगा कि आप दक्षिण भारतीय होकर भी ना केवल हिन्दी से प्रेम करती हैं वरन् हिन्दी मे कविताएँ भी लिख रही हैं । मै भी बैंगलोर मे कार्यरत हूँ और कन्नडिगा लोगों से दिन-रात सम्पर्क मे रहता हूँ ।
ज्योति जी।
आपकी कविताएँ हमेशा से ही सरल और सहज होती हैं। मुझे लगता है हिन्दी की पारम्परिक-कविता को भी आपने जीवित रखा है।
वाह सुन्दर कविता और साथ में चित्र का भी बखूबी मेल किया है आपने।
सरलतम एवं सुन्दर कविता...
बहुत खूब.
दिव्याभ जी आप ने ठीक कहा सोच ही सब कुछ है यह हमारी सोच ही जो हमें आगे बढने की प्रेरणा देती है अप का बहुत बहुत ध्न्यवाद
अभिषेक जी आप का धन्यवाद कि आप ने मुझे पढा जान कर खुशी हुई कि आप बंगलोर में रहते हैं कभी आयेंगें तो मिलने की कोशिश करेंगें
शैलेश जी सरल और सहज कविता मन को जल्दी छूती है आप का शुक्रिया कि आप को कविता अच्छी लगी
श्रीश जी आप का भी शुक्रिया यूँही सहयोग देते रहिएगा
गिरि जी धन्यवाद थोडे से शब््दों में बहुत सारा हौसला देने के लिए
सुन्दर सरल एंव श्रेष्ठ रचना
आप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
आपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
होली मुबारक
bahut khub....nice read...ese he likhtey aur sunate rahiye....shubhkamnao ke santh....
Pradeep
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