Tuesday, November 20, 2007

माटी का दिया

सांध्य रवि ने कहा
मेरे बाद होगा कौन?
रह गया सारा जग
सुनकर निरूत्तर मौन

एक नन्हें दिए ने
तब कहा कि " नाथ
जितना मुझसे हो सकेगा
मैं दूँगा साथ"

कि छोटा-सा हूँ मैं
माटी का एक दिया
खुद जलता हर पल
जग रोशन करता पल-पल

माना मुझमें है नहीं
सूरज की-सी रोशनी
मुझमें है नहीं
चँदा की-सी चाँदनी
पर मुझमें कोई दाग नहीं
और न लगे मुझें ग्रहण कभी

हो चाहे मेरे तले अँधेरा
पर रोशन हो हर बसेरा
कि मैं एक छोटा-सा
माटी का दिया


7 comments:

Rajesh Jindal said...

पर रौशन हो हर बसेरा ...
खूबसूरत रचना और मानवीय भाव ... ����

Swarna Jyothi said...

धन्यवाद राजेश जी और भी रचनाएँ हैं गौर फरमाइएगा।,😊🌹

Unknown said...

बहुत सुन्दर कविता

रेखा श्रीवास्तव said...

सुंदर कविता और अभिव्यक्ति !

Monalisa said...

अतिसुंदर।

Swarna Jyothi said...

Bahut bahut dhnywaad Viji ji rekha ji Anur monalisa ji

kalpanarao1@gmail.com said...

Lovely poem...aisehi roshni filate rahiye