Friday, November 17, 2006

यूँ तो यह कविता एक-बारगी पढने पर साधारण सी प्रेम कविता लगती है परन्तु यह कविता कबीर के राम के लिए निर्गुण भाव को दर्शाती हुई जैसी प्रेम कविता है सच ही है हम अपने राम को कहाँ किस रूप में रख पायेंगें

तेरा अक्स

मैंने तुमको कैसे-कैसे अक्स करना चाहा.....

आँखों में काजल बनाकर रखना चाहा
पर तुम बह गए अश्रु बन कर

होंठों पर मुस्कान बना कर रखना चाहा
पर तुम घुल गए मोम बन कर

गालों में लाली बना कर रखना चाहा
पर तुम उड गए कपूर बन कर

बालों में कली का गजरा बनाकर रखना चाहा
पर तुम मुरझा गए फूल बन कर

हाथों में कँगन बना कर रखना चाहा
पर तुम टूट गए सपना बन कर

पर तुम्हें किसी अक्स की क्या ज़रूरत....

तुम तो महकते हो सांसों में खुशबू बन कर
धडकते हो दिल में धडकन बन कर
गूँजते हो कानों में सरगम बन कर
बहते हो मन में मधु बन कर ।
यह कविता कुछ २५ सालों पहले लिखी थी पर आज भी लगता है कि यह बात उतनी ही सच है जितनी उस समय थी

ख़ूने जिग़र

एक खूबसूरत शाम ढले
कोरे काग़ज़ का टुकडा
दिया था किसी को
"लिख दो" कुछ कह कर कि
जाने अब हम कब मिले.....?

पाया मैंने ऐसा उत्तर....

लिख न पायेंगे कुछ
कैसे कह दें
नहीं आता लिखना कुछ
क्या ऐसा लिख दे

मैं हँस पडी........

दी है उसी ने दुआ
लाल स्याही से
जैसे लिखा हो
ख़ूने जिग़र से

Wednesday, November 15, 2006

हम सभी ने उडते हुए बादलों को देखा है। कई आकार-प्रकार के रूप में देखा है। उन बादलों को देख कर आप के मन में क्या ख्याल आया होगा यह तो मैं नहीं जानती पर मेरे मन में उन बादलों से बात करने की चाह हुई मैं बात भी की जवाब क्या मिला जानते हैं-----जवाब तो मिला पर मैंने बातों ही बातों में उसे चुनौती भी दे दी कैसे ---कुछ ऐसे--

खामोश चुनौती

मैंने बादल से कहा
तुम पर एक कविता
लिखना चाहता हूँ

बादल हँसा..... व्यंग्य से
पूछा उसने.....
क्या तुम्हारी कविता
है मुझ सी रंगी....?
मैंने कहा.....नहीं

क्या तुम्हारी कविता
चंचल, चपल, शांत और
है गंभीर....?
मैंने कहा....... नहीं

धरती आकाश में समाहित
ऐसा मेरा सारा व्यक्तित्व
सॄष्टि के नियम के संग-संग
रचा मेरा अस्तित्व

क्या तुम्हारी कविता
सुंदर मोहक शीतलता
से है शोभिता
मैंने कहा ..... नहीं पता

बादल बोला
जब जीवन के रंग ही न हो
तो कविता क्या
ख़ाक लिखोगे.....?
मैं निरूत्तर
मौन हो गया ।

Tuesday, November 07, 2006

कविताएँ लिखना मुझे नहीं आता है क्योंकि मैंने कभी भी लिखने के लिए नहीं लिखा बस कभी कोई ख्याल मन में आया, कभी कोई दर्द दिल को तडपा गया, कभी कोई खुशी तन को महका गई तो कभी कोई सपना देख लिया, सारे ख्याल, सारे दर्द , सारी खुशियाँ और सारे सपनों को कलम के जरिए कागज़ को कह दिया अब कहने से ही तो दिल ्हल्का होता है न ।
हम सभी बहुत सारे सपने देखते हैं कभी -कभी दिन में जागती आँखों से भी सपने देखते हैंं
मैंने भी कुछ सपने देखे हैंं आप को मेरे सपनों के विषय में बताती हूँ देखिए हँसिएगा नहीं

कैसा होगा

कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
तरन्नुमों* से खामोशी* तक,
इस राह से उस मँजिल तक,
बस फ़ूल ही फ़ूल हो तो कैसा होगा....?

कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
सूरज की रोशनी से चँदा की चाँदनी तक ,
एक ऊषा से एक निशा तक ,
इतना फ़ासला ही न हो तो कैसा होगा...?

कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
आसमां और धरती का मिलन ,
क्षितिज की इस कल्पना का,
सत्य में साकार हो तो कैसा होगा....?

कभी-कभी इस दिल ने ऐसा भी सोचा है,
सपने तो सपने हैं सपनों की हक़ीक़त क्या?
पर सपने भी सच्चे हो ं तो कैसा होगा......?

*जन्म
*मृत्यु
सभी मित्रों को नमस्कार
मैं स्वर्ण ज्योति पाँडीचेरी से आप सब का मेरे इस ब्लोग में आमंत्रित कर स्वागत करती हूँ
वैसे तो मेरी मातृ भाषा कन्नड है और यहाँ की स्थानीय भाशा तमिल
परन्तु मैं हिन्दी में रचनायें लिखती हूँ । वास्तव मे मेरे लिए हिन्दी ही मेरी सखि सहेली और संबंधी भी है
२५ साल पहले जब मैं यहाँ आई थी तब मुझे तमिल नहीं आती थी और कन्नड के कोई भी दोस्त मुझे नहीं मिले तब मेरी सखि बन कर हिन्दी ने ही मुझे अकेलेपन से उबारा था रचनायें तो मैं सालों से करती थी परन्तु यहाँ आकर मेरी रचनाओं में निखार आया क्योंकि अकेलेपन में मैंने हिन्दी को ही दोस्त बना कर हिन्दी से ही बातें की। आज मेरी एक कविताओं की किताब "अच्छा लगता है" छप चुकी है। अभी मैंने एक तमिल काव्य संग्रह का हिन्दी में अनुवाद किया है और एक जैन ग्रंथ का जो कि कन्नड में है अनुवाद कर रही हूँ । आज इंटरनेट के माध्यम से मैं आप सब को यह बातें बता रही हूँ जबकि मेरी रचनायें २५ साल पुरानी हैं आज आप सब तक पहुँचाने के लिए यह जरिया मिला है वरना यहाँ तो हिन्दी कोई पढता ही नहीं है, बावजूद इसके मैंने हिन्दी में काम करना नहीं छोडा । अब आप से गुजारिश है कि मेरी रचनाओं को पढ कर मुझे प्रतिक्रिया भेजें । इस ब्लोग में आप मैं मेरी कविताओं के साथ-साथ कहानी और लेख भी पढ सकते हैं । आशा करती हूँ कि आप सब का सहयोग मुझे प्राप्त होगा ।
धन्यवाद सहित
स्वर्ण ज्योति